भवन निर्माण (Building Construction) kese ki jati hai step by step

हैलो दोस्तों आज हम बात करेंगे कि भवन निर्माण कैसे किया जाता है। हम आपको पूरी जानकारी स्टेप बाय स्टेप बताने का प्रयास करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं कुछ सामान्य जानकारी से।


 भोजन, वस्त्र तथा रहने के लिए मकान मनुष्य की 3 मूल भूत आवश्यकताएं हैं। इन आवश्यकताओं में रहने के लिए मकान का होना हर मनुष्य के लिए आवश्यक है। प्राचीन समय से ही मनुष्य अपने रहने के लिए किसी न किसी प्रकार का घर बनाता आ रहा है। पाषाण काल, जो पत्थर के युग के नाम से जाना जाता है, में मनुष्य अपने रहने के लिए पत्थर की गुफाओं के अंदर घर बनाया करते थे ताकि वह अपने आप की जंगली जानवरों, धूप, वर्षा आदि से रक्षा कर सकें।

       भवन निर्माण सिविल इंजीनियरिंग की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत भवनों की प्लानिंग, ले आऊट, डिजाइनिंग प्राक्कलन (Estimate) आदि कार्य क्रमबद्ध रूप से करके भवन को सुविधाजनक तथा मितब्ययी बनाया जाता है। भवन का आरेख, डिजाइन तथा प्राक्कलन (Estimate) आदि तैयार कर यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि भवन निर्माण होने के पश्चात उसका स्वरूप कैसा होगा तथा निर्माण में कितनी लागत आएगी आदि।

भवन निर्माण कार्य पूर्ण करने में इंजीनियर, वास्तुकार, ड्राफ्ट्समैन तथा कारीगरों आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इंजीनियर भवन का डिजाइन, प्लानिंग करते हैं। ड्राफ्ट्समैन इंजीनियरों के निर्देशानुसार स्वच्छ ड्राइंग तैयार कर भवन का प्राक्कलन (Estimate) तैयार करते हैं तथा कारीगर इसे ड्रॉइंग के अनुसार आकार प्रदान करते हैं। इन सभी को अपने अपने कार्य में निपुण होना आवश्यक है ताकि भवन निर्माण में कोई कमी न रहे।

    भवनों का वर्गीकरण (Classification of Building) :-

             भवनों में रहने वाले लोगों के उपयोग के अनुसार भवनों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया गया है -

     1) आवासीय भवन (Residential Building)
     2) सार्वजनिक भवन (Public Building)
     3) शिक्षा संस्थानों के भवन (Educational Building)

     

     क्रमानुसार भवन निर्माण कार्य (Sequence of Building Construction:-

     भवन का मानचित्र प्राक्कलन आदि कार्य संपन्न करने के पश्चात स्थान में भवन निर्माण कार्य प्रारंभ किया जाता है। भवन निर्माण करते समय निमन कार्य क्रमबद्ध रूप से किए जाते हैं -

    (1) भवन का भूमि पर अंकन (Setting Out of Building on tha Ground) :- 

     इसे भवन का ले-आउट (Layout) करना भी कहते हैं। भवन निर्माण का यह प्रथम चरण है। इस कार्य के अंतर्गत संरचना की विभिन्न दीवारों की केंद्र रेखाएं, खुदाई रेखाएं तथा दीवारों की मोटाई रेखाओं का जमीन का अंकन किया जाता है ताकि ड्रॉइंग के अनुसार संरचना का निर्माण किया जा सके। विभिन्न रेखाओं का भूमि पर अंकन करने तथा परीक्षण करने के लिए सभी दीवारों के सिरों में चिनाई के खंभे खुदाई रेखा के 1 से 2 मीटर दूरी पर बनाए जाते हैं। 



    (2) मिट्टी की खुदाई (Excavation) :-

     ले-आउट (Layout) कार्य संपन्न करने के पश्चात चूने से डाली गई खुदाई रेखाओं को संदर्भ मानकर मिट्टी की खुदाई का कार्य किया जाता है। इस कार्य के लिए ट्रेंच प्लान (Trench Plan) का होना आवश्यक है ताकि खुदाई का निरीक्षण किया जा सके। खुदाई करते समय यदि भूमि कमजोर मिट्टी वाली हो तो खाइयों की काठबंदी की जाती है।

    (3) नींव में कंक्रीट डालना (Concrete in Foundation) :-  

    नींव की खुदाई करने के पश्चात नींव में सीमेंट या चूने की कंक्रीट डाली जाती है। कंक्रीट डालने से पूर्व सतह को लेवलिंग यंत्रों की सहायता से लेवल कर लेना चाहिए, तभी कंक्रीट डालने चाहिए। कंक्रीट डालने के लिए सभी घटकों को विशिष्टियों के आधार पर मिलाकर तहों में डालना चाहिए तथा उसी कुटाई कर देनी चाहिए। कंक्रीट बनाने के आधे घंटे के अंदर उपयोग में ले लेना चाहिए।

    (4) दीवारों की केंद्र रेखाओं का स्थानांतरण (Transferring Centre Line of Walls) :-

     कंक्रीट डालने के पश्चात निर्देश प्लेटफार्मों की मदद से जमीन पर केंद्र रेखाओं का अंकन किया जाता है। इसके लिए पतली डोरी या रस्सी दोनों ओर के निर्देश प्लेटफार्मों में तानकर रखी जाती है तथा साहुल (Plumb Bob) की सहायता से उसे कंक्रीट के तल पर स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस प्रकार सभी दीवारों की केंद्र रेखाएं कंक्रीट पर अंकित कर दी जाती हैं।

    (5) नींव कुर्सी में चिनाई कार्य (Masonry Work in Foundation and Plinth) :-

     कंक्रीट पर दीवारों की केंद्र रेखाएं अंकित हो जाने के बाद नींव की चिनाई का कार्य प्रारंभ किया जाता है। इसके लिए केंद्र रेखा के दोनों ओर दीवार के आदि मोटाई में चिनाई की जाती है तथा रस्सी व साहुल की मदद से दीवार की क्षैतिज व   ऊर्ध्वाधर  स्थितियों की जांच कर लेनी चाहिए।

    (6) नींव की खाइयों में भराई (Earth Filling in Foundation Trenches) :-

      कुर्सी तक चिनाई संपन्न करने के उपरांत नींव से खोदी गई मिट्टी को पुनः नींव की खाइयों में भर दिया जाता है। मिट्टी की भराई तहों में की जानी चाहिए।

    (7) शील रोधक रद्दे की तह देना (Laying of Damp Proof Course) :-

      जमीन की नमी को अधिस्रांचना की दीवारों में चढ़ने से रोकने के लिए कुर्सी दीवारों की पूरी चौड़ाई में (दरवाजों की देहली तथा बरामदे की दीवारों को छोड़कर) शीलरोधक रद्दे की तह फैलाई जाती है। आमतौर पर सील रोधक तक की मोटाई 2.5 से 3 सेंटीमीटर तक रखी जाती है।

    (8) दरवाजे की चौखट लगाना (Placing of Doors Frame) :-

       कुर्सी दीवार से ऊपर चिनाई का कार्य करने से पूर्व ड्राइंग के अनुसार दरवाजे की चौखट खड़े किए जाते हैं।

    (9) अधिस्रांचना में चिनाई का कार्य (Masonary Work in Super-Structure) :-

     दरवाजों के चौखट खड़े करने के उपरांत अधिस्रांचना में चिनाई का कार्य प्रारंभ किया जाता है। ड्राइंग के अनुसार खिड़कियों के सिल (Sill) लेवल तक चिनाई सम्पन हो जाने पर खिड़कियों के चौखट, दरवाजों की चौखटों की तरह खड़े कर दिए जाते हैं।

    (10) दरवाजे व खिड़कियों के ऊपर लिंटल डालना (Placing Lintel Over Doors and Windows) :-

       दरवाजे व खिड़कियों के शीर्ष तक चिनाई करने के बाद दरवाजे व खिड़कियों के ऊपर लिंटल बिछाया जाता है। इसके लिए आवश्यक शटरिंग तैयार कर लोहे के सरिए बिछाकर कंक्रीट भी दी जाती है।

    (11) फार्म वर्क (Form Work) :-

       छत को अस्थाई सहारा प्रदान करने के लिए लकड़ी, लोहे आदि के अवयवों द्वारा जो अस्थाई टिकाव दिया जाता है, फार्म वर्क कहलाता है।

    (12) प्रबलन का बिछाना (Laying of Reinforcement) :-

     फार्म वर्क का कार्य संपन्न होने के उपरांत लोहे की छड़ों को बिछाने का कार्य किया जाता है। आवश्यक कवरिंग छोड़ने के लिए मुख्य प्रबलन फार्म वर्क से कुछ ऊपर रखे जाते हैं।

    (13) कंक्रीट डालना (Placing of Concrete) :-

      प्रबलन का कार्य समाप्त करने के पश्चात ड्राइंग के अनुसार निर्धारित मोटाई की कंक्रीट बिछा दी जाती है। 


    (14) छत की तराई (Curing) :- 

      कंक्रीट डालने के बाद जब कंक्रीट कुछ कठोर हो जाए, उसकी तराई की जाती है। तराई 15 से 20 दिनों तक लगातार करनी चाहिए ताकि कंक्रीट पूर्ण सामर्थ्य ग्रहण कर सके।

    (15) दीवारों में प्लास्टर करना (Plastering of Walls) :-

      छत का निर्माण कार्य पूर्ण होने के पश्चात जब छत मजबूत हो जाए तब फार्म वर्क हटा दिया जाता है तथा दीवारों व सीलिंग आदि में प्लास्टर का कार्य किया जाता है।

    (16) फर्श बनाना (Flooring) :-

      फर्श बनाने के लिए ड्राइंग के अनुसार सर्वप्रथम कुर्सी की भराई करके फस का आधार तैयार किया जाता है, तत्पश्चात बांछित फर्श बनाया जाता है।

    (17) जल एवं सेनिटरी फिटिंग (Water and Sanitary Fitting) :-

      इसके अंतर्गत भवन के गंदे जल का निकास तथा पीने के पानी की व्यवस्था के लिए ड्राइंग में दिए गए निर्देशों के आधार पर पाइप अली फिट किए जाते हैं।

    (18) बिजली की फिटिंग (Electrical Fitting) :-

     इसके अंतर्गत विभिन्न कमरों में लगाई जाने वाली ट्यूबलाइट, पंखे, प्लग आदि के लिए ड्राइंग के अनुसार बिजली की फिटिंग की जाती है।

    (19) दरवाजे खिड़कियों व रोशनदानों की फिटिंग (Fixing of Doors, Windows, and Ventilator) :-

      सभी दरवाजे, खिड़कियों व रोशनदानों में ड्राइंग के अनुसार उचित फिटिंग का कार्य किया जाता है।

    (20) सफेद एवं रंग पुताई (White Washing & Colour Washing) :-

      उक्त कार्य संपन्न करने के पश्चात भवन के अंदर व बाहर ड्राइंग के अनुसार सफेद पुताई रंग पुताई का कार्य किया जाता है।

    भवन निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण करने के पश्चात जो कुछ छोटे कार्य रह जाते हैं उन्हें पूर्ण करके भवन को रहने योग्य बना दिया जाता है।

     निष्कर्ष :-

    आज के इस लेख में हमने Building Construction कैसे किया जाता है विषय से संबंधित कई सारे सवालों के जवाब सरल शब्दों में अपने पाठकों को देने का प्रयास किया है। इस आर्टिकल के द्वारा आज आप सभी को भवन निर्माण (Building Construction) कैसे किया जाता है  step by step करके आपको बताया है |  उम्मीद करते है की आपको यह लेख जरूर पसंद आया होगा। यदि लेख पसंद आए तो इसे शेयर जरूर करें।

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